तुम क्या जानो वो रोटियों का स्वाद
जो कभी नान मे हमें मिला नहीं
वो भिंडी और नेनुआ का आहार
जो चिकन बिरयानी से कभी मिटा नहीं
आँखों में कुछ सपने समेटे
बढ़ चले हम नगरों कि ओर
तुम क्या जानो वो मिट्टी की खूशबू
जो बारिश के बाद हमें मिला नहीं
फूल, बागीचे, पेड़, पहाड़
सब के सब खड़े हैं
तुम क्या जानो वो सरसों का खेत
जो हरियाली देख के कभी मिटा नहीं
दिन-रात कब गुजरते चले गये
ये पता भी ना चला
तुम क्या जानो वो सुबह शाम की लालीमा वाली धूप
जो किताबों के बोझ से कभी दिखा नहीं
गले लग के हाथ मिला के
मिलते रहे सभी से हम
तुम क्या जानो उन गोस्ठियो का लुफ्त
जो फोरमालिटी से कभी मिटा नहीं