तुम्हारे नाम की चिट्ठी

 कॉपी के पिछले पन्नों पे

बहुत सारी चिट्ठी तुम्हारे नाम लिखी है

सोचती हूँ उसे सादे

पन्ने पे खूबसूरती से सजा के

तुम्हारे पास भेज दूं

तुम्हारे दरवाजे पे 

बिना आहट किए

उसे छोड़ आऊं

बिना अपना पता डाले

फिर न जाने क्यूँ ये डर लगता है

कि तुम उन शब्दों में पिरोये

प्यार को समझ नहीं पाओगे

वो सारे उभार तुम्हारे

लिए सिर्फ काले शब्द हुए तो?