कोई वक्त कैसे मापे? और क्या मायने ढूंढे इस गुजरते वक्त में? कुछ घंटों में कैद हो जायेगा आज का दिन क्या वो फिर कभी आजाद होगा? जिस कल का इंतजार है मुझे वो हर घड़ी मेरी आंखों के सामने बीत रहा है। तो, कल में नया क्या होगा? आज, कल की हटाई चादर से निकला है और कल, आज की अंगड़ाई से निकलेगा फिर, इस त्रिकोण में नया क्या है? क्या है ऐसा जिससे मैं रोज गुजर रही हूं पर समझ नही रही? और अगर समझ रही तो वहा से क्यूं गुजर नहीं रही?