आग



एक व्यक्ति अपने बीवी और बच्चों के साथ गांव में रहते थे । एक छोटे से घर में उनकी पुरी दुनिया समाई हुई थी । गांव के बाकी लोगों के तरह ही ये भी खेती करते थे  और अपनी जिंदगी खुशी खुशी गुजार रहे थे । फसल अच्छी हुई थी । साल भर का राशन जमा करने के बाद जो भी कुछ बचा था  उसे बेचकर अच्छे पैसे आ गये थे ।

जिन्दगी में सबकुछ अच्छा चले ऐसा भगवान को मंजूर कहां होता है ॽ
एक दिन अचानक उनके एक पुआल के ढेर में आग लग गई  थोड़ी दिक्कत तो हुई पर आग पे काबू पा लिया गया ।
ये खबर भी आग की तरह पूरे गांव  और उनके रिश्तेदारों तक पहुंच चुकी थी । और सब धिरे धिरे  उनसे हाल पूछने  आने लगे थे ।
सबके जबान पे एक ही सवाल होता आग कैसे लगीॽ ज्यादा कुछ नुकसान तो नहीं हुआ ॽ सब ठीक है ना ॽ
लोगों के आने का शिलशिला बढते जा रहा था  और उनके  आवभगत के खर्चे भी । चाय नाश्ता तो रोजमर्रा की जिंदगी में  एक आम बात बन चुकी है ।
इसी दरम्यान  एक और व्यक्ति ने  उनसे फीर पुछा
आग क ईसे लगलव हो ॽ
व्यक्ति ने जवाब दिया
आग लगल त ना हल लेकिन धिरे धिरे  अब लगीत हे ।

इंतज़ार

खिड़कियों से बाहर झाँकती आँखें अपने आस-पास के चीजों को बड़ी बखूबी से महसूस कर रही थी ।

सुबह की किरण पेड़ों को जगा रही थी ।
उनकी पत्तियां हवाओ मे अंगड़ाई ले रही थी ।
आसमां में थोड़े से बादल अपने सफर को तैयार हो रहे थे ।
अपनी धुन मे सबकी जिन्दगी धिरे धिरे आगे बढ़ रही थी ।
नवजात सूर्य धिरे धिरे बड़ा हो रहा था ।
आँखें मिलाने वाली रौशनी पत्तियों पर बूंदों को निहार रही थी।
हवाओ को ये आलिंगन रास नहीं आया, बड़ी बेदर्दी से उन्होंने पत्ते को छुआ जिसकी वजह से बूंद पानी मे विलीन हो चुका था।
सुर्य की बेचैनी ने उसे  इतना उग्र बना दिया था कि उनसे आंखें मिलाना तो दूर, सामने खड़े होने की भी हिम्मत नहीं थी ।
बीच आसमां में बूंद की तलाश जारी थी, अफसोस अपनी छवि के अलावा सुर्य कुछ और ढूंढ नही पा रहे थे ।
उग्र, रौद्र रूप, भी बूंद ढूंढ न पाया था ।
आँखें थकती जा रही थी, उम्र अपना पल्ला धिरे से सरकाये जा रहा था, पर प्यास उतनी ही तीव्रता से बढ रही थी ।
दुर कीनारे पे एक छोटे से पौधे पर बूंद,सुर्य का इंतज़ार कर रही थी ।
बादलों की बारात, रौशनी के साथ हो चली थी ।
सूर्य और बूंद के स्पर्श से,
संध्या शरमा के रात की चादर ओढ़ रही थी ।