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इंतज़ार

खिड़कियों से बाहर झाँकती आँखें अपने आस-पास के चीजों को बड़ी बखूबी से महसूस कर रही थी ।

सुबह की किरण पेड़ों को जगा रही थी ।
उनकी पत्तियां हवाओ मे अंगड़ाई ले रही थी ।
आसमां में थोड़े से बादल अपने सफर को तैयार हो रहे थे ।
अपनी धुन मे सबकी जिन्दगी धिरे धिरे आगे बढ़ रही थी ।
नवजात सूर्य धिरे धिरे बड़ा हो रहा था ।
आँखें मिलाने वाली रौशनी पत्तियों पर बूंदों को निहार रही थी।
हवाओ को ये आलिंगन रास नहीं आया, बड़ी बेदर्दी से उन्होंने पत्ते को छुआ जिसकी वजह से बूंद पानी मे विलीन हो चुका था।
सुर्य की बेचैनी ने उसे  इतना उग्र बना दिया था कि उनसे आंखें मिलाना तो दूर, सामने खड़े होने की भी हिम्मत नहीं थी ।
बीच आसमां में बूंद की तलाश जारी थी, अफसोस अपनी छवि के अलावा सुर्य कुछ और ढूंढ नही पा रहे थे ।
उग्र, रौद्र रूप, भी बूंद ढूंढ न पाया था ।
आँखें थकती जा रही थी, उम्र अपना पल्ला धिरे से सरकाये जा रहा था, पर प्यास उतनी ही तीव्रता से बढ रही थी ।
दुर कीनारे पे एक छोटे से पौधे पर बूंद,सुर्य का इंतज़ार कर रही थी ।
बादलों की बारात, रौशनी के साथ हो चली थी ।
सूर्य और बूंद के स्पर्श से,
संध्या शरमा के रात की चादर ओढ़ रही थी ।


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