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Showing posts from December, 2018

सैलाब

मेरे अन्दर इतनी हिम्मत नहीं कि तुम्हारे जाने के बाद मै तुम्हारी हर ख्वाहिश पुरी कर सकु नाहीं इतनी ताकत बची है कि तुम्हारे बिखरे पड़े सामान को समेट सकू मै तो बस दरवाजे पर खडी इन बिखरी चीजो को निहार सकती हूँ क्यूंकि इनमें ही अब बसे हो तुम बाहर जाने की भी हिम्मत नहीं पता नहीं कब,कहाँ,कैसे कोई सैलाब आ जाये ।