सैलाब







मेरे अन्दर इतनी हिम्मत नहीं
कि तुम्हारे जाने के बाद
मै तुम्हारी हर ख्वाहिश
पुरी कर सकु
नाहीं इतनी ताकत बची है
कि तुम्हारे बिखरे पड़े
सामान को समेट सकू
मै तो बस दरवाजे पर
खडी इन बिखरी चीजो
को निहार सकती हूँ
क्यूंकि इनमें ही अब
बसे हो तुम
बाहर जाने की भी
हिम्मत नहीं
पता नहीं
कब,कहाँ,कैसे
कोई सैलाब आ जाये ।

1 comment:

Deep Ranjan said...

Wah......
Bahut badhiyan