रस्सी और तांगा

 शहर के एक छोर पर खडा़ आदमी

तांगे कि रस्सी अपनी हाथ में लिये

खड़ा रहता है

वो ना तांगा अपने घर की आंगन में

बांधना चाहता है

नाही वो उसे खुद से दूर करने कि

सोचता है

तांगा अगर घर कि आंगन में पड़ा रहा

तो एक दिन उसका मुल महत्व खो जायेगा

और अगर वो चलता रहा तो 

शायद थक जायेगा

बस इसी डर कि वजह से

आदमी हाथों में रस्सियों कि

ढेर लिये घूमता है

वो धीरे धीरे रस्सी छोड़ता जाता है

और तांगा धूल में खोता जाता हैं

सूरज और धरती




सूरज और धरती के रिस्ते मे

फासले बहुत है

इसका यह मतलब नहीं कि

सूरज धरती को देखना 

बन्द कर देता है

या उसे देख गुस्से से

मूहं फुला लेता है

चांद को उसके आगे-पीछे देख के

वो कुंठित नहीं है और

ना ही वो इस बात पे ख़फा है

वो जानता है

धरती उसका सर्व है 

पर वो उसे पाना नहीं चाहता।