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Showing posts from March, 2021

ढ़लती शाम

  ढ़लती शाम और  अधखुली आँखों से देखता सूरज अपनी जिंदगी चंद लफ्जों मे बयांं कर रहा है कुछ घंटों कि जिंदगी से वो उदास नहीं है वो अपना पूरा दिन किसी के इन्तजार मे तपा के  थक चुका है और अब वो बस सागर की बाहों में सो जाना चाहता है।

तुम्हारा छांव

  तुम्हारे जड़ों के किनारे बोई गई हूं तुम्हारे छांव के निचे बड़ी हो रही हूं तुम्हारे पत्तों से छन के निकलीं धूप मेरे केशों को संवार रही हैं तुम्हारे तनों को छू के गुजरी हवायें मुझे ठंड़क दे रही हैं तुम्हारा खूद बारिश में खड़े हो मुझे बूंदों से बचाना मुझे भा रहा हैं तुम्हारे आंधियों से लड़ के  मुझे संजोना मुझे सवांर रहा है।