ढ़लती शाम और
अधखुली आँखों से देखता सूरज
अपनी जिंदगी चंद लफ्जों
मे बयांं कर रहा है
कुछ घंटों कि जिंदगी से
वो उदास नहीं है
वो अपना पूरा दिन
किसी के इन्तजार मे तपा के
थक चुका है
और अब वो बस सागर की बाहों
में सो जाना चाहता है।
ढ़लती शाम और
अधखुली आँखों से देखता सूरज
अपनी जिंदगी चंद लफ्जों
मे बयांं कर रहा है
कुछ घंटों कि जिंदगी से
वो उदास नहीं है
वो अपना पूरा दिन
किसी के इन्तजार मे तपा के
थक चुका है
और अब वो बस सागर की बाहों
में सो जाना चाहता है।
तुम्हारे जड़ों के किनारे
बोई गई हूं
तुम्हारे छांव के निचे
बड़ी हो रही हूं
तुम्हारे पत्तों से छन
के निकलीं धूप
मेरे केशों को संवार रही हैं
तुम्हारे तनों को छू के गुजरी
हवायें मुझे ठंड़क दे रही हैं
तुम्हारा खूद बारिश में खड़े हो
मुझे बूंदों से बचाना
मुझे भा रहा हैं
तुम्हारे आंधियों से लड़ के
मुझे संजोना
मुझे सवांर रहा है।