शायद वो भूल गया है मुझे 3 हफ्ते हो गए और मेरी कोई खबर नहीं। क्यों जरूरी हूं मैं उसके लिए उसके जिंदगी में बहारों की क्या कमी है? मोबाइल की नोटिफिकेशन निहारती मै, उसके मेसेजेज का वेट करती मै, कितनी अजीब लगती हूं। खुद से बातें करके मैने घर के कोने में एक बड़ा सा ऊन का गट्ठर तैयार कर लिया है रोज उस गट्ठर को सुबह-शाम देखती हूं दोपहर को उसके कंधे पर सोती हूं और शाम ढले उसके बाहों से सरक कर फिर से जमीन पर आ लगती हूं। जब गट्ठर से जी भर जाए तो फिर से मोबाइल का नोटिफिकेशन निहार लेती हूं और फिर से वही निराशा। कितनी दयनीय हो गई हूं मैं! कल सुबह उठ के मैने यही सोचा की मैं आज उस ऊन के गट्ठर को खिड़की से बाहर फेक दूंगी और उस जगह पर खुद को सजाऊंगी और आज जब खिड़की खोली तो वो अपने गुलदस्ते वाले चेहरे के साथ खड़ा था।
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