दिल में एक अजीब सी बेचैनी है
एक घबराहट, नहीं, शायद डर
नहीं नहीं शायद कुछ भूल रही
कुछ है पर पता नहीं क्या
दिन की चाल ठीक- ठाक है
रातों को ना जाने क्यों
नींद ना आने की बीमारी है
मेरे सिरहाने बैठ
उजाले को अपने बालों
में कैद करके रखतीं हैं
अंधेरे को लगता है
वो मुझे डरा रहा है
पर उसे क्या पता
मैं उसके सानिध्य में
कितनी निखरती जा रही हूं
शून्य हूं पर पूर्ण हूं।