कुछ किरणें अपनी मुट्ठी में बांध ली है मैने ताकि अंधेरा छाने पर अपनी मुठ्ठी खोल आगे का रास्ता देख सकूं कभी कभी सोचती हूं इन किरणों के बिना क्या हूं मैं? क्या मैं वही छोटी सी बच्ची हूं जिसका बचपन मैं दोहरा रही हूं, या मैं खुद में सिमटी थोड़ी सी उस बच्ची से मिलती_जुलती एक अलग बच्ची हूं? बीते हुए कल की बच्ची में और मुझमें सिर्फ इतना ही फर्क है की मेरे पास किरणें है।