सवाल




ये ख़त उस इंसान के नाम है जिसे मैं ख़त नही लिख सकती। मैं उससे कहना चाहती हूं कि मैं तुम्हारे सारे राज जानती हूं। तुम्हारी सारी कही बातें जो एक वक्त पे तुम्हारा सच हुआ करती थी, वो अब टूट के बिखर चुकी हैं। मुझे तुम्हारी वो शक्ल दिखी जिसे छुपाने के लिए तुमने काफी मशक्कत की थी। 
मैं यही सारी बाते तुम्हे कह देना चाहती हूं, फिर सोचती हूं तुम्हे क्या मलाल इन चीजों का? मुझे लगता है मेरा कह देना शायद तुम्हे ये ऐहसास दिला दे, की तुमने जो किया वो गलत था। पर मैं कितनी कमदीमाग हूं जो ये सोचती हूं। 
मेरा तुमसे ये कह देना मेरे अंदर के गुब्बार को कभी शांत नहीं कर सकता। मुझे मलाल रहेगा शायद जिंदगी भर की मैं तुम्हे जानती हूं। काश मैं तुम्हे ना जान रही होती। कितना अच्छा होता। 
काश मैं तुम्हारे पीछे भागी ना होती। कितना अच्छा होता। 

अपनी बेवकूफी पे मुझे कभी कभी तरस आता है और तुम्हारी चालाकी देख के मैं हतभ्रत हो जाती हूं। 
दुनिया में दिखावे के लिए और भी चीजें रही है इंसान इस्तेमाल करने की जरूरत क्या थी? 
मुझे जब भी लगा मैं तुम्हे समझ रही हूं, जानने लगी हूं तुम्हे, तभी तुम्हारी शक्सियत ने मुझे पीछे खींचा है। 
ऐसा नहीं है कि मुझे इन चीजों का कभी आभास नहीं रहा। मुझे शुरुवात से अजीब सा लगा, अटपटा सा लगा। फिर भी मैं आगे बढ़ी क्युकी मैने शब्दों पे भरोसा किया। 
तुम्हारे शब्दों के क्या मोल जो हर दूसरी बात पे पलटते है। 
तुम्हे ये गलतफहमी है की तुम अपने आस पास के लोगों को खुश रख सकते हो। सच यह है कि तुम खुद खुश नहीं हो। 
मेरे बहुत सारे सवाल है जो पूछना चाहती हूं मैं तुमसे, पर अभी नहीं। मेरा कुछ भी पूछना तुम्हारे अंदर के डर को बाहर कर देगा और तुम सच नही बोलोगे। तुम बचाओगे अपने आप को मेरे हर एक सवाल से। 
जब तुम जिंदगी के अंधेरे में डूब रहे होगे और तुममें झूठ बोलने की ताकत मर चुकी होगी तब तुम मेरे सवालों के जवाब देना।

तितली





एक तितली के पास 
बड़े खूबसूरत पंख हैं।
चटकीले रंगों वाली पंख,
वो एक बार अपना पंख फैलाए 
तो दूर तक उड़ सकती है 
पर, हर रोज वो खिड़की के पास
आके रुक जाती है।
ना खिड़की से बाहर जाती है
ना दरवाजे से अपने पैर 
बाहर निकालती है।
वो कमरे के दरवाजे पे देखती है
अपने बच्चे, 
कमरे के एक कोने में उसे 
कामों का ढेर दिखता है।
कमरे के दूसरे कोने में 
उसके ख्वाब जलते है।
और, छज्जे से टंगी 
इच्छाओं की लाश 
से खून टपकता है।