ये ख़त उस इंसान के नाम है जिसे मैं ख़त नही लिख सकती। मैं उससे कहना चाहती हूं कि मैं तुम्हारे सारे राज जानती हूं। तुम्हारी सारी कही बातें जो एक वक्त पे तुम्हारा सच हुआ करती थी, वो अब टूट के बिखर चुकी हैं। मुझे तुम्हारी वो शक्ल दिखी जिसे छुपाने के लिए तुमने काफी मशक्कत की थी। मैं यही सारी बाते तुम्हे कह देना चाहती हूं, फिर सोचती हूं तुम्हे क्या मलाल इन चीजों का? मुझे लगता है मेरा कह देना शायद तुम्हे ये ऐहसास दिला दे, की तुमने जो किया वो गलत था। पर मैं कितनी कमदीमाग हूं जो ये सोचती हूं। मेरा तुमसे ये कह देना मेरे अंदर के गुब्बार को कभी शांत नहीं कर सकता। मुझे मलाल रहेगा शायद जिंदगी भर की मैं तुम्हे जानती हूं। काश मैं तुम्हे ना जान रही होती। कितना अच्छा होता। काश मैं तुम्हारे पीछे भागी ना होती। कितना अच्छा होता। अपनी बेवकूफी पे मुझे कभी कभी तरस आता है और तुम्हारी चालाकी देख के मैं हतभ्रत हो जाती हूं। दुनिया में दिखावे के लिए और भी चीजें रही है इंसान इस्तेमाल करने की जरूरत क्या थी? मुझे जब भी लगा मैं तुम्हे समझ रही हूं, जानने लगी हूं तुम्हे, तभी तुम्हारी श...