अनकही






1) आज कल मैं तुम्हारे बारे में ज्यादा बातें करने लगी हूं। मैने कई बार सोचा की तुम्हारा ख्याल अपने मन से झटक दूं और सामने वाले को कह दूं की मुझे बात नही करनी, पर ऐसा हुआ नहीं। मैने जितनी बार यादें झटकी उतनी ही तेजी से वो मन के दरवाजे तोड़ के अंदर घुसी है। अब मैं तुम्हारे बारे में बातें कर लेती हूं। सुन लेती हूं जो सामने वाला कह रहा होता है। आज उसके कहे पे हसीं आई जो उसने तुम्हारे बारे में कहा। वक्त बेवक्त वो तुम्हारा जिक्र कर लेता है, शायद वो टूटे अंश तलाश रहा है मुझमें पर अफसोस उसे अभी तक कुछ मिला नहीं। और मुझे पूरा भरोसा है आगे भी नही मिलेगा। वो कुछ दिनों बाद तुम्हारी बातों का जाल फेकेगा मेरी तरफ, इन बातों से अनजान की धीरे धीरे तुम्हारी यादों का पत्थर अब पत्ता बनता जा रहा है। तुम्हारे यादों के सूखने के इंतजार में..






2) Mr. अकडू

तुम्हारा ख्याल पूरे दिन जेहन में घूमते रहता है। सुबह आँख खुलने से लेके रात को सोने जाने तक। दिन भर के काम में खुद के बारे में ना सोच पाना आज कल मेरे लिए आम बात हो चुकी है। आज सुबह की शुरुवात तितलियों सी हुई है। महीनों बाद तुमसे मिल रही हूं सोचा है अपना पसंदीदा रंग पहनूं। आज का दिन मेरा होगा। अपना काम खत्म कर के मिलने का अनुभव ठीक वैसा है जैसे धुले कपड़े रस्सी पे सूखने डाले गए हों। कपड़ों से टपकता पानी मेरी थकान है जो तुमसे मिलने के बाद धीरे धीरे मुझे हल्का करेंगी। तुमसे मिलना ठंड की दोपहरी है। तुमसे मिलना शाम की चाय है। तुमसे मिलना मेरे अकेलेपन का खो जाना है। अपने आप को ना जाने कितनी बार आईने के सामने संवार चुकी हूं, पर ऐसा लगता है कुछ रह गया है। मैंने साड़ी पहनी है खुद को अच्छी दिख रही हूं। कोशिश रहेगी तुम्हे भी अच्छी दिखूं।
शाम 6 बजे चावरी बाजार मेट्रो स्टेशन पे तुम्हारा इंतजार रहेगा। जल्दी आना।
💮🌸





3) तुम हर साल के आखिरी दिन मिलो मुझसे। तुम्हारा मुझसे आखिरी दिन मिलना ठीक वैसे हो जैसे शाम होते सूरज का ढलना और ठीक उसी वक्त आसमान पर चाँद का दिखना। दोनों का एक जगह होके भी ना मिलना, तुम ठीक वैसे मिलो मुझसे। तुम मिलो मुझसे बिना किसी वादे के साथ। तुम मिलो हाथ पे अपना वक्त लेके। तुम जब मिलो मुझसे तो मुझसे मिलो, मेरे होने से नही। तुम मिलो बिना मेरा पता पूछे। तुम मिलो ठिठुरती ठंड में धूप की तरह जिसकी गर्माहट जरूरी नहीं हर रोज मिले। तुम मिलो हर साल के आखिरी दिन जिससे मुझे लगे यह कल की ही तो बात थी।






4) अमुमन हर चीज कैमरे में कैद हो जाती है सिवाए खुशबू के। हर जगह की अपनी एक खुशबू होती है। हर शख़्स की अपनी एक खुशबू होती है। जब हम उस जगह और लोग के नजदीक होते है तो वो खुशबू महसूस कर सकते है। खुशबू महसूस करने का मतलब है उस इंसान के करीब ना होके भी करीब होना। अपने बीते हुए कालचक्र में उसे हू-बहू घटते देखना। शहर की बारिश में भींग करके गांव की सोंधी मिट्टी महसूस करना। ये खुशबू हमारे जिंदा दिखने की निशानी है। ये खुशबू हमारे जागते रहने की निशानी है। ये खुशबू हमारे कल को ना भूलने की निशानी है। ये खुशबू हमारे बीते कल में होने का प्रमाण है।





5) एक कमरा है। इस कमरे में दरवाजे, बालकनी, रैक, बिस्तरे के अलावा 2 सजीव लोग भी रहते है। ये बात और है की उनके होने का अहसास नहीं होता। वो भी अलमारी में सजी किताबों की तरह हो चुके है, आता सब है बस कोई पढ़ने वाला नहीं है। तो बस पड़े रहते है। ये बर्तनों से भी कम आवाज करने लगे है आज कल।
खाली बैठे है?
अरे! नहीं नहीं। इनका अपना काम है। सुबह सुबह उठ के दफ्तर जाना। पूरे दिन अपने आप को झोंक के शाम को रेंगते हुए घर को आना।
फीर?
फिर वही अपने बिस्तर में सिमट के पूरी दुनिया मोबाइल में देखना। मशीन हो चुके हैं ये भी बस कुछ विचार कायम है जो इन्हें इंसान के कटघरे में रखे हुए है।
हर रोज सड़क पे चलते, मिलते है ये हजारों से पर खुद से कब मिलते हैं ये कहना मुश्किल है। घूमते चकाचक गलियों में है और घर का बल्ब बदलना भूल जातें हैं।








6) किसी मोड़ पे आके अपना आधा से ज्यादा वक्त लोगों के बीच बाटने के बाद वही लोग जब दरकिनार कर जाए तो बुरा लगता है। बुरा लगता है जब वो आपके लिए नहीं होते। इससे भी दर्द ये दे जाता है की हम उनके हर अच्छे बुरे में रहे पर वो आसानी से अपना पल्ला झाड़ निकल लेते हैं। बुरा लगता है जब सबकी गलतियां दरकिनार कर दिजाये और तमका आपके गलती पे गाड़ दिया जाए।


 



7) दूसरे दूसरे जगहों से आए लोग एक चौक पे मिले थे। एक साथ बैठने के बाद उन्हें ये बात पता चली की सबको एक ही जगह जाना है तो, सबने साथ चलना ही उचित समझा। साथ चलने से रास्ता अच्छा दिखने लगा। वक्त कब बीत जाता था इस बात का पता ही नही चलता था। सब लोग हसीं खुशी से अपना रास्ता तय कर रहे थे। 
यूं जब हम किसी के साथ होते है तो उनके बारे में जानने लगते है। फिर सब कुछ जान लेने के बाद इस निष्कर्ष पे पहुंचते है की फलाने इंसान में ये सही बात है और ये गलत। ये हम अपनी सोच से बनाते है। हमे जो ठीक लगता है अपने हिसाब से उसे हम अच्छी मानते है और बाकी को बुरी। पर ऐसा नहीं है की ये सही गलत का फर्क इंसान को आधा सही और गलत में बाट देता है। अमूमन यही होता है की हर इंसान में कुछ सही और गलत आदतें होती है दूसरे की नजरों से। 
तो हुआ ये की रास्ते चलते चलते उन लोगों को भी एक दूसरे की कमियां दिखी। उन कमियों के आधार पर लोगों ने अपने हिसाब से अपने जैसे इंसान के साथ रास्ता चलना सही समझा। रास्ता एक ही था पर लोगों में थोड़ी अनबन दिखने लगी थी। कुछ बहुत रहस्यमयी बातें सिर्फ कुछ ही लोगों को बताई गई बाकी इन सब से अनजान बस चलते रहे। 
एक वक्त ये भी आया जब हर किसी को हर किसी में कमियां दिखने लगी। इन कमियों का पलड़ा इतना भारी रहा की अच्छाई दिखना ही बंद हो गई। सब एक दूसरे से परेशान हो गए। सब ने उस वक्त को कोसा जब उन्होंने एक साथ चलने का सोचा था। 
दिन गुजरे, लोग चलते रहे। जब रास्ते एक हो तो कहीं न कहीं टकराना हो ही जाता है। फिर से लोग धीरे धीरे आगे पीछे ही सही साथ चलने लगे। सब का फिर वही हसीं ठिठोली शूरू हुआ बस एक इंसान पीछे छूट गया। 

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3 Comments

Akash Tripathi said…
Bahut khub likha h aape👏👏
bilkul jo aaj kl ki jeeven jis daur se gujar raha dosti aur unkr riste samay ke saath kaise badalte h sab kuch apne shabdo me likha
Sakshi said…
Bahut aacha likha hai
suruchi kumari said…
Thank you so much 😊