कमरा नंबर 220








बारिश और होस्टल आहा! सुकून।
हेलो दी मैं आपकी रूममेट बोल रहीं हूं, दरवाजा बंद है, ताला लगा है। आप कब तक आयेंगी। 
रूममेट? 
रूममेट, जिसका इंतजार मुझे शायद ही रहा हो। कमरा नंबर 220 में एक शख्स आने वाला है। कमरा नंबर 220, जो पिछले 2 महीनों से सिर्फ मेरा रहा है। सिर्फ मेरा। 
मैंने और कमरा नंबर 220 ने साथ-साथ कॉलेज की बारिश देखी है। अहा! बारिश और मेरा कमरा कितना सुकून अहसास देता है। बारिश जब हवा के साथ आती है तो वो कमरे की बालकनी से अंदर आके करंट पानी खेल के जाती है। कमरा, जिसपे मेरा एकाकिक वर्चस्व रहा है। कमरा, जिसमे मैं कॉलेज से आते ही धब्ब से बिस्तर पर पड़ के पंखे के नीचे अपने बाल खोल कर बालकनी से बाहर बादल देखा करती हूं। कमरा, जिसे मैंने अब तक अकेले जिया है। 
हेलो?
हां, मैं अभी ऑडिटोरियम में हूं, तुम कहां हो?
मैं होस्टल में हूं। कमरे के बाहर।
कितने देर से खड़ी हो?
सुबह से ही आई हूं। ऑफिस का काम करा के ये लोग रूम अलॉट किए है। 
अच्छा..... यार मैं तो 6 बजे तक आऊंगी। तुम उम्मम्म.... तुम्हारे साथ कोई और है?
पापा थे चले गए वो।
अच्छा, सामान भी है?
हां, एक बैग है।
अभी आना जरूरी है?
आ जाती तो ठीक रहता, सुबह से भाग-दौड़ ही रहे हैं थोड़ा आराम कर लेते। 
अच्छा ठीक है, आते हैं। 
कमरा नंबर 220 अब मेरे अकेले का नहीं रहेगा। कौन है लड़की? कहां से आई है? क्या नाम बताया था? ओह, सब भूलते जा रही हूं। 
पूरे रास्ते मैं यही सोचते-सोचते होस्टल आ गई थी।
कमरे के दरवाजे पर पहुंच कर देखा वहां एक बैग पड़ा था और कोई था नहीं।
कैसी लड़की है, फोन करके खुद गायब हो जाती है। मैंने फिर फोन मिलाया। 
हेलो? कहां हो, मैं आ गई हूं।
अच्छा, आ गई आप ठीक है मैं आती हूं। 
सफेद कुर्ता, छोटा कद, चमकीली आंखे और थके हुए चेहरे ने मेरी ओर मुस्कुराकर देखा। 
मैंने फिर ताला खोला। 
सामने का बिस्तर खाली था। उसे उसका एरिया बताया। थोड़ी बहुत बात की जिसमे सिर्फ हाय, हेलो ही था और मैं वहां से ऑडिटोरियम के लिए निकल गई। 
बच्ची दिखती है, कौन सा कोर्स होगा? फिर से ख्यालों का अंबार और फिर से वही सारी बातें मेरे जहन में कौंधने लगीं। पता नहीं कैसी होगी?
शाम होते ही मैं वापस कमरे में आई। कमरा, जिसका ताला दोपहर तक मैं खोला करती थी, वह आज अंदर से बंद है। अजीब है यह सब। 
मैंने दरवाजा दो, तीन बार पीटा उसके बाद दरवाजा खुला। 
मुझे लगा पहले बात करते हैं। अपना बेस्ट तो देना ही पड़ेगा, आखिर रहना तो इसी कमरे में है। वह भी एक साल। 
मैं अपनी दिनचर्या बताई। कैसे यूनिवर्सिटी में NAAC को आने को लेकर कार्यक्रम हो रहा है। क्या-क्या तैयारियां चल रहीं हैं और, मैं उसमे पार्टिसिपेट कर रही हूं। वगैरह-वगैरह। 
उधर से जवाब आया अच्छा....
तुमने नाम क्या बताया था?
शिवानी
कहां से हो?
गाजीपुर।
कौन सा कोर्स?
एजुकेशन, B.ed.
कोर्स तो पहले से ही स्टार्ट है, तुम लेट आई हो।
हां, मेरी तबियत ठीक नहीं थी।
अच्छा। तुम्हारे ही डिपार्टमेंट से एक लड़की इसी फ्लोर पर रहती है।
अच्छा, कमरा कौन सा है।
पता नही यार। 
यह सब बातें बता देने के बाद मैं हाथ मुंह धुलने चली गई। 
वापस आके मैंने पूछा, और कैसा था आज का दिन?
ठीक ही था। बस थका दिए ये लोग। यहां जाओ, वहां जाओ।
हां, ये तो होता ही है। 
चलो 8 बज गए है। मेस चलते है। 
ठीक है दी।
मैं और शिवानी मेस की तरफ गए। मैंने उसे 2 मेस के बारे में बताया। और मैं जिस मेस में खाती थी मैं उसी मेस में ले गई। यह भी बताया की अगर खाना ठीक ना लगे तो दूसरा मेस भी ट्राई कर लेना। इस पर उसका जवाब था ठीक है, पहले खा कर देखते हैं।
होस्टल में रूममेट के किस्से बड़े डरावने रहे थे। किसी का रूममेट के साथ झगड़ा होना, किसी का उसके रूम से समान गायब हो जाना और उसका इल्जाम रूममेट पर आना। ताला बंद कर के बिना बताए चले जाना। बात-बात पर बहस होना। यह सारे किस्से आम थे। मैं रूममेट से यह सब नहीं चाहती थी। इस डर की वजह से जब नए सेशन का रूम एलॉटमेंट शुरू हुआ था मैने अपना बचा-खुचा सामान अपने तरफ रख लिया था और, दूसरी तरफ खाली जगह छोड़ रखी थी। 
जो डर मेरे मन में था वही शायद सामने वाले के मन में भी रहा हो यह ठीक-ठीक कह पाना मुश्किल है। 
इन सब के बीच शिवानी का रवैया अलग रहा। उसने मुझे खुले मन से अपनाया। मैं आमतौर पर फोटो खिंचाने से कतराती हूं, पर शिवानी मुझे कैमरा फेस करना सीखा गई। 
मुझे याद है मैं ऑडिटोरियम से आई थी, पंजाबी लड़की जैसा पोशाक पहन रखा था। बालों में परांदा लगाया था और रूम पर आते ही रोज की तरह ही मैं कपड़े बदलने फटाफट भाग रही थी की शिवानी ने कहा, दी आइए ना फोटो खींचू आपकी।
फोटो? नहीं, यार रहने दो।
आइए ना।
उसने मुझे पोज करने को कहा।
पोज और मेरा दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। यह बात शायद वह नहीं जानती थी। उसने कुछ-कुछ कहा पोज करने को मैने ठीक वैसे ही कर दिया। 
शिवानी मेरे साथ घुलने मिलने लगी और मैं उसके साथ। जो खाली जगह क्लास रूम में शुरू हुई थी वह शिवानी भरने लगी थी। शिवानी का मुझे दीदी कहना बहुत अच्छा लगने लगा था। वह जब भी मुझे दीदी कहती मुझे ऐसा लगता कितनी बड़ी जिम्मेदारी है यह छोटी सी बच्ची। और इस जिम्मेदारी को मैने सहर्ष स्वीकारा था। मुझे लगता था वक्त गुजरते शिवानी का उठना-बैठना मेरे साथ कम हो जाएगा पर हुआ इसके ठीक विपरीत। हम दोनो साथ-साथ बाहर जाने लगे। जरूरत की कुछ चीजें अगर चाहिए होती थी तो हम साथ ही जाया करते थे। हमारी रातों की लंबी बातें, सुबह उठ कर गाना गाना, रोज एक-दूसरे को अपनी दिनचर्या बताना यह सब आम होने लगा था। हमारी जिंदगी में ऐसे बहुत से लोग होते है जिनके साथ हम हंसते है, पर ऐसे बहुत कम लोग होते है जिनके साथ हम रोते है। शिवानी उन कम लोगों में से एक है। (काला टीका)
सोसाइटी के सोशल स्ट्रक्चर को लेकर हमारी लंबी बात होती रही थी। उसमे भी खास करके औरतों की जगह का। क्या मायने है घर से बाहर आकर पढ़ने का? क्या मायने है बाहर से पढ़ कर घर में वापस जाने का?यह सब बातें करते करते हम अक्सर सो जाया करते। 
सैटरडे नाइट हमारी ऑफिशियल चंपी नाइट होने लगी थी। एक दूसरे को एग्जाम टाइम में पढ़ने के लिए जगाए रखने का सिलसिला शुरू हो चुका था। 
डर से शुरू हुआ रिश्ता मखमली चादर में लिपटने लगा था। 🌸





7 comments:

Akash Tripathi said...

Waah mja aagya padhkar bahut badhiya😄

suruchi kumari said...

Thank you so much 😊

Priyanka Soni said...

Amazing story and writing skill too 👏

suruchi kumari said...

Thank you

Anonymous said...

Isko padh ke mere aankho mei aasun a gye di.... Aapne kitna ache se aap dono k Safar ko bta diya ..jisme ek roommate k dimaag mei aane wali saari shuruati baate bhi bakhubi likhi h aapna ❤️❤️❤️

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
suruchi kumari said...

Thank you so much