कचरे का ढेर

 

                                            शिवानी 



मैं कचरे के ढेर में रहती हूं

और इस ढेर में रहते हुए 

खुद को दूसरों से अलग दिखाने की 

पुरजोर कोशिश करती रहती हूं

पूरी जिंदगी।

निम्न अस्तर के कचरे में रहने वाले 

लोगों से मुझे एक अजीब सी 'बु' आती है

मैं जब उनकी गली से गुजरती हूं 

तो नाक पर हाथ का चले जाना 

बहुत आम प्रक्रिया होती है।

'बु' वाले घर से मेरे घर एक लड़की काम 

करने आती है।

मैं अपनी कुर्सी पे बैठी होती हूं

और वो सामने बने सीढ़ियों पे बैठती है।

मुझे नहीं पता उसके घर के खाने का स्वाद

पर वो जानती है मेरे घर क्या पकता है

मैने कभी उसका चूल्हा नहीं देखा 

पर वो रोज मेरा बर्तन साफ कर के ही घर जाती है।

पूजा के समय वो पीतल के बर्तन नहीं धुलती

पर अम्मा को जब पूजा करते करते कमर में 

तेज दर्द होता है तो 

वो पूरे बदन की मालिश जरूर करती है।

अम्मा ने बक्से से एक चमकीली साड़ी 

निकाली है।

और वो साड़ी अब उन्हें नई लग रही

सो उन्होंने उसे पहनना सुरु कर दिया है

मैने कहा अम्मा ये साड़ी आप पर नहीं जचती

उन्होंने कहा ' फेकन बो के देवे के बा ता तनी पही न  लेवतानी' 



नाजुक से मर्द






बड़े नाजुक से मर्द है मेरे घर में 
10 कदम भी नहीं चल सकते बेचारे 
औरतों ने बोतल के बोतल पानी 
से भर कर फ्रिज सजा दिया 
पर फूल से हमारे मर्द से 
फ्रिज का दरवाजा तक ना खुला।
बड़े नाजुक से मर्द है मेरे घर में।
बड़ी डींगें मारते है घर के बाहर 
घर आते ही उन्हें अपना कुम्हलाया 
बदन याद आ जाता है।
वो लोहे की बनी औरतों से 
अपना दुख गाया करते हैं 
बड़े नाजुक से मर्द है मेरे घर में।
और याददाश्त तो कहिए नहीं
पाउती में बंद करके फेक आए है
बेचारे जहां खाते है थाली वही छोड़ देते है
बड़े नाजुक से मर्द है मेरे घर में। 
ऐसा नहीं की निक्में है सब 
बाहर नारी सशक्तिकरण 
के नारे लगाते है 
और घर की दहलीज पर
कदम रखते ही
लोहे के बनी औरतें को अपना 
ऑर्डर दे देते है। 
बड़े नाजुक से मर्द है मेरे घर में।