10 कदम भी नहीं चल सकते बेचारे
औरतों ने बोतल के बोतल पानी
से भर कर फ्रिज सजा दिया
पर फूल से हमारे मर्द से
फ्रिज का दरवाजा तक ना खुला।
बड़े नाजुक से मर्द है मेरे घर में।
बड़ी डींगें मारते है घर के बाहर
घर आते ही उन्हें अपना कुम्हलाया
बदन याद आ जाता है।
वो लोहे की बनी औरतों से
अपना दुख गाया करते हैं
बड़े नाजुक से मर्द है मेरे घर में।
और याददाश्त तो कहिए नहीं
पाउती में बंद करके फेक आए है
बेचारे जहां खाते है थाली वही छोड़ देते है
बड़े नाजुक से मर्द है मेरे घर में।
ऐसा नहीं की निक्में है सब
बाहर नारी सशक्तिकरण
के नारे लगाते है
और घर की दहलीज पर
कदम रखते ही
लोहे के बनी औरतें को अपना
ऑर्डर दे देते है।
बड़े नाजुक से मर्द है मेरे घर में।

Comments
Mardo ki ek alag jaat likhi h
fareb c mardangi se wakiqf h saari duniya
Har ghar k auraton ki halaat likhi h...