आज बादल चाँद के छुपावत नईखे, काहे त ई रात ओरियात नईखे । सफेद चादर में ढकल बा पुरा रात, पर मन के अमावस जात नईखे । पुरा के पुरा अन्न फेकल बा डिब्बा मे, इहां जूठन भी डलात नईखे । हजारों दिप चमक रहल बा आसमान में, फीर भी घर में उजाला आवत नईखे । चिंगारी देवे वाला के कमी नईखे, अफसोस, कोई आग बुझावत नईखे । फटल कपड़ा मे देखनी ह मुस्कान लिपटल, मन, लेकिन मानत नईखे । कुछ के ऊँच आसन भईल ह, आ, कुछ लोगन के सोहात नईखे । भर के पईसा निकलल बाड़े बजार मे, दिल, लेकिन खरीदात नईखे । हजार कीचड़ उछलल बा जिस्म पे, पर आत्मा केहूसे छुआत नईखे । बड़ा खुबसुरत रचना बा भगवान के, केहुके एकरा पर अख्तियार नईखे ।