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Showing posts from January, 2019

आँखें

आपको आँखें पढ़ना नही आता आता, तो न ये सवाल होते ना मेरे होठों पे जवाब के शब्द आपको तो शक्ल भी पढ़ना नही आता अगर आता, तो ना ये गलतफहमीयों का शिलशिला होता न मेरी आँखें सच बताने पे मजबूर होती सारी बातें अगर कह देनी हि थी तो वो हल्की मुस्कान, चमकीली आंखों ने मुझ धोखा दिया है मै न जाने क्या क्या पढ़ गई और आप चांद देख के भी बादलो मे खोने का ढोंग कर गये

किताब और फिल्म

हम इंसान जितना पढ़ के सिखते है, उससे कहीं अधिक देख के सिखते है । भारत हर साल सबसे ज्यादा फिल्में बनाने वाला देश है, जिसमे कुछ फिल्में किसी के जिवन पे आधारित होती है, तो कोई किताब पे। अगर कोई फिल्म किसी के जिवन पे बना है, तो लोगो को उनके जीवन के बारे मे या तो पहले से पता होता है, या कुछ लोगों को फिल्म देखने के बाद पता चलता है । ऐसे में ये जरूरी है कि फिल्म हूबहू वैसे हि दिखाया जाए, जैसे उनका जीवनकाल रहा है । ये शारी बाते किताबो पे बनी फिल्मों पे भी लागू होती है । क ई बार फिल्मकार हूबहू क्षण परदे पे उतार देते है, और क ई बार भारी चूक हो जाती है । ऐसे में फिल्मकारों को ये बात ध्यान में रखना चाहिए कि जो लोग पाठक होते है वो दर्शक भी होते है, ऐसे में एक ॒दो त्रुटि माफी के काबिल है, पर पुरी की पुरी  पलट पाठक बने दर्शक को पसंद नहीं आता। हाॅफ गर्लफ्रेंड, चेतन भगत द्वारा लिखी गई बेस्टसेलर किताब जिसपे फिल्म हाॅफ गर्लफ्रेंड बनाई गई । जब रिया, माधव को पारले जि दे के अपना शादी का बात बताती है, तो फिल्म मे इंडिया गेट पे चढने कि कोइ ज़रुरत हि नही थी । होटल मे माधव, रिया को पहले देखता है ...