किताब और फिल्म

हम इंसान जितना पढ़ के सिखते है, उससे कहीं अधिक देख के सिखते है । भारत हर साल सबसे ज्यादा फिल्में बनाने वाला देश है, जिसमे कुछ फिल्में किसी के जिवन पे आधारित होती है, तो कोई किताब पे।
अगर कोई फिल्म किसी के जिवन पे बना है, तो लोगो को उनके जीवन के बारे मे या तो पहले से पता होता है, या कुछ लोगों को फिल्म देखने के बाद पता चलता है । ऐसे में ये जरूरी है कि फिल्म हूबहू वैसे हि दिखाया जाए, जैसे उनका जीवनकाल रहा है । ये शारी बाते किताबो पे बनी फिल्मों पे भी लागू होती है । क ई बार फिल्मकार हूबहू क्षण परदे पे उतार देते है, और क ई बार भारी चूक हो जाती है । ऐसे में फिल्मकारों को ये बात ध्यान में रखना चाहिए कि जो लोग पाठक होते है वो दर्शक भी होते है, ऐसे में एक ॒दो त्रुटि माफी के काबिल है, पर पुरी की पुरी  पलट पाठक बने दर्शक को पसंद नहीं आता।

हाॅफ गर्लफ्रेंड, चेतन भगत द्वारा लिखी गई बेस्टसेलर किताब जिसपे फिल्म हाॅफ गर्लफ्रेंड बनाई गई ।
जब रिया, माधव को पारले जि दे के अपना शादी का बात बताती है, तो फिल्म मे इंडिया गेट पे चढने कि कोइ ज़रुरत हि नही थी ।
होटल मे माधव, रिया को पहले देखता है और एक जगह बैठ के इंतजार करता है बिना जगह छोड़े,  ऐसे मे रिया का फिल्म मे पहले ही माधव को पहचान लेना बिल्कुल मुनासिब नहीं था।
ये बाते कहने का तात्पर्य यह है कि जो फिल्म पाठक अपने  आँखो से किताब के  उन काले अक्षर मे देख, संजो लेते है, वो फिल्में सात रंग मिलाके भी दिखाने मे कामयाब नहीं होती है ।

ऐसिडेनटल प्राइम मीनीशटर एक ऐसी फिल्म है जिसे जनता पहले ही देख चुकी है, सुन चुकी है, हजारो डिस्कशन हो चुके है, पर फिर भी ये फिल्म दिखाने मे क ई सवाल खडे हो रहे है। मै ये बताती चलूं की ये फिल्म एक किताब पे बनी है जो ऐसिडेनटल प्राइम मीनीशटर, संजय बारू, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार ने लिखी है।
इस फिल्म में ऐसा कुछ नया नहीं है जो जनता नहीं जानती, हां, ये एक अलग मुद्दा है कि ये फिल्म वर्ष २०१९ मे रिलीज होने जा रही है । खैर, इस फिल्म को लोग कितना पसंद करते है इसका फैसला ११ जनवरी के बाद हो जायेगा ।

बात उन शारी फिल्मों कि जो किताबो पे बनने वाली है, वो सारे पल जो किताबो के पन्नों में कैद है वो परदे पे आयेगी । ऐसे मे फिल्मकारों से उम्मीदें ज्यादा है,  आशा है वो इन उम्मीदों पे खरे उतरेंगे ।

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1 Comments

Unknown said…
भारत समेत दुनिया के सभी देशों में आज कॉपीराइट कानून होता है जब भी फिल्में बनती हैं तो उन्हें निर्धारित अवधि तक लेखकों की सहमति लेने की जरूरत पड़ती है।
ऐसे में लेखकों की सहमति से ही फिल्में बनाई जाती हैं। हां, निर्धारित अवधि के पश्चात फिल्मकार कहानी में परिवर्तन करने के लिए स्वतंत्र होता है। हर व्यक्ति को हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है और हम सबों को उसका खुले मन से स्वागत करना चाहिए।