सपने




 इस संसार में हर व्यक्ति अपने भविष्य की कामना करता है। वह कभी यह नहीं सोचता कि क्या वो कल तक जिवित भी रहेगा।

भविष्य में जीने की ऐसी होड़ है कि हम सब सपनों का ऐंनटिलिया बना चुके है और उसे हर किमत पे हकिकत बनते हुए देखना चाहते हैं। इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए अगर छोटी-छोटी खुशियों की बलि भी देनी पड़े तो हम पिछे नहीं हटेंगे। 

एक बड़ी सी खुशियों की थाली के लिये हम हर दिन चम्मच जैसी खुशी को त्याग देते है। और जब बड़ी मसक्कत के बाद हम अपना ऐंनटिलिया पा जाते हैं तो, सिवाये खालीपन के हमारे पास कुछ नहीं बचता। ईंटों कि चारदीवारी मे शुन्य का शासन होता है।

हमारे हिस्से का चाँद



वो अपनी खिडक़ी से आंसमा पे आँखें टिकाए
अपने हिस्से का चाँद तकता है
और मैं अपने हिस्से का चाँद निहारती हूं।
वो सोते हुए आसमान मे तारों के
दिये जलाता है
मै अलसाई आसमान पर
बादलों का कम्बल डालती हूं।

मिट्टी की दिवार

 लाडो़ लगता है बारिश होने वाली हैं

हां अम्मा, आज रात बहुत अच्छी नींद आयेगी। और मै कह देती हूं , आज बरामदे में सिर्फ मै सोऊंगी छुटकी नहीं।

हां- हां सो जाना, पर ये भी सोच अगर तेज बारिश हुई तो क्या होगा? बडी मुश्किल से ये दिवार खड़ा किया है। इस बारिश में कहीं ये दिवार......

लाडो़ कुछ देर आसमां की ओर देखती हैं.. बादलों पे आँखें टिकाये कहती हैं, नहीं अम्मा आज नहीं होगी देख ना ये कैसे फीके से बादल है । तू अंदर जा, और आज रात बरामदे में छूटकी के साथ सो जाना।