इस संसार में हर व्यक्ति अपने भविष्य की कामना करता है। वह कभी यह नहीं सोचता कि क्या वो कल तक जिवित भी रहेगा।
भविष्य में जीने की ऐसी होड़ है कि हम सब सपनों का ऐंनटिलिया बना चुके है और उसे हर किमत पे हकिकत बनते हुए देखना चाहते हैं। इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए अगर छोटी-छोटी खुशियों की बलि भी देनी पड़े तो हम पिछे नहीं हटेंगे।
एक बड़ी सी खुशियों की थाली के लिये हम हर दिन चम्मच जैसी खुशी को त्याग देते है। और जब बड़ी मसक्कत के बाद हम अपना ऐंनटिलिया पा जाते हैं तो, सिवाये खालीपन के हमारे पास कुछ नहीं बचता। ईंटों कि चारदीवारी मे शुन्य का शासन होता है।