अरे चाची आप क्या रही हो? मेरे रहते आपको कुछ भी करने कि जरूरत नहीं। सुधा ने किचन के दहलीज पर पाँव रखते हुए कहा।
अरे दिन भर तो तुहि लगी रहती हैं, कभी अपनी चाची को भी कुछ कर लेने दे।
सुधा- बिल्कुल नहीं, आप जाइये बैठिये ना, वैसे भी आपका सिरियल आने वाला है।
अच्छा ठीक है, मै जा रही हूं। अरे, मै तो बताना ही भुल गई। आज प्रतीक के लिये आलु के पराठे बना देना वो कल से इसकी रट लगाये बैठा है। चाची ने किचन कि दहलीज पार करते हुए कहा।
चाची आटा कहा रखा है? सुधा ने बरतन ताकते हुए पुछा।
अरे वहीं देख लाल वाले डब्बे मे।
हाँ मिल गई।
चाची, आलु मे कितनी सिट्टी लगाऊं?
आंच कम करके पाँच, छह सिट्टी लगा दे।
और अगर कहीं कच्ची रह गई तो?
तो एक-दो और लगा देना।
आलु पुरा गल तो नहीं जायेगा?
इतने सवालों के जवाब देने से बेहतर है मै खुद ही बना लूँ। चाची ने खीजते हुए कहा।
ये क्या बात हुई चाची, मै तो बस पुछ हि रही हूं। अगर रोटियां अच्छी नहीं बनेंगी तो नवाबजादे तो घर सर पर उठा लेंगे। सुधा ने नाक सिकोड़ते हुए कहा।
तु मेरे बेटे कि गलतियां निकाल रही हैं? चाची ने चीखते हुए कहा।
अरे मै तो बस सच बोल रही हूं।
सच! क्या है तेरा सच जरा मै भी सुनु।
मुंह ना खुलवाया करो चाची, दिन भर कोल्हू के बैल कि तरह घर का काम करते रहती हूं, कभी किसी को शिकायत नहीं होने देती। लेकिन मेरी एक गलती पर पुरा घर मुंह फाड़ कर मुझ पर बरसता है। आपके शहजादे के रंग-ढंग मुझे नहीं पसंद जब देखो खाने के पिछे पड़ा रहता है। पेट मे नाद गाड़ रखी हो जैसे।
कुकर ने छठी बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए एक लम्बी सिट्टी लगाई।