घर में पहली बार कोई अजीब सी मशीन आई है। रंग काला, दो हिस्से है इसके, एक बड़ी सी आयताकार नुमा ढांचा है जिसपे 0 से 9 तक के अंक लिखे हुए हैं। बुश्शर्ट के जैसे बटन है, बस इनमें छेद नहीं है। दो और बटन है इसमे, वो क्या है, पता नहीं। बस 0 के अगल बगल लगे हैं। एक हिस्सा घुमावदार तार से होता हुआ दुसरे हिस्से से जुड़ा है। छोटे वाले हिस्से के दोनों छोर पर गोलाकार छेद बने हुए हैं। हाँ, और अंकों वाले ढांचे में एक और बटन है। जिसका काम बिल्कुल ढेकी की तरह है। उसका शीरा दबाने से वो बिल्कुल पीचटा हो जाता है और, छोड़ देने पर मुँह उठा कर खड़ा हो जाता है। एक और बात बताना तो भूल ही गए, इसकी लम्बी सी पूंछ भी है। बहुत लम्बी बिल्कुल हनुमान जी की तरह।
इसकी खाश बात यह हैं कि, इसमें घंटी बजती है। स्कूल की घंटी से थोडी सी अलग है पर खुबसूरत हैं। छोटे पतले वाले हिस्से से आवाज भी आती है। जब मैने माँ से पुछा, ये आवाज कैसी है? तो उन्होंने बताया कि, इससे हम दुर बैठे लोगों से बात कर सकते है।
मैने पुछा, क्या सब से बात कर सकते हैं?
माँ ने कहा, हाँ
वो अपनी भोपाल वाली बुआ से भी?
हाँ।
और कलकत्ते वाले चाचा से?
हां भई हां
मैने पतला वाला हिस्सा उठा कर फिर देखा। माँ, क्या चाचा और बुआ इसमें रहते हैं?
माँ जोर से हंसने लगीं और बोली, नहीं, बुद्दधु वो अपने घर में रहते है और उनके यहां भी ऐसा ही टेलीफोन है।
टेलीफोन? अब ये क्या होता है?
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