पर तुम हो कही और
तुम देख मुझे रहे हो
पर तुम्हारी नज़रों में है कोई और
जब तुम कहते हो कि
तुम आज अच्छी लग रही हो,
तो तुम क्या मुझे ही देख
रहे होते हो?
जब तुम कहते हो कि
मेरा कोई नहीं है तुम्हारे सिवा
तो क्या तुम उसे अपनी नजरों में रख के
अपना जीवन देखते हो?
जब तुम कहते हो कि
तुम्हारे सिवा रिश्तों की समझ
किसी में नहीं है
तो क्या तुम उसे मेरी
जगह रख के देखते हो?
जब तुम कहते हो कि
तुम पे सबकुछ अच्छा लगता है
तो क्या तुम उसे उन सारे लिबास में देखते हो?
जब तुम कहते हो कि मुझे तकलीफ
हो रही है
तो क्या तुम उसकी तकलीफ के
बारे में बात कर रहे होते हो?
जब तुम कहते हो कि
मेरी खुशियां कुछ नही हैं
तुम्हारे बिना
तो क्या तुम उसकी खुशियों को
अपने नजरों में सहेज के देखते हो?