भगवान

किताबों की पढ़ी पढ़ाई बातें अब पुरानी हो चुकी हैं। जमाना इंटरनेट का है और ज्ञान अर्जित करने का एक मात्र श्रोत भी। किताबों में देखने से आँखें एक जगह टिकी रहती हैं और आंखों का एक जगह टिकना इंसान के लिए घातक है क्योंकि चंचल मन अति रैंडम। थर्मोडायनेमिक्स के नियम के अनुसार इंसान को रैंडम रहना बहुत जरूरी है अगर वो इक्विलिब्रियम में आ गया तो वह भगवान को प्यारा हो जाएगा। 
भगवान के नाम से यह बात याद आती है कि उनकी भी इच्छाएं अब जागृत हो गई हैं और इस बात का पता इंसान को सबसे ज्यादा है। इंसान यह सब जानता है कि भगवान को सोना कब है, जागना कब है, ठंड में गर्मी वाले कपड़े पहनाने हैं, गर्मी में ऐसी में रखना है और, प्रसाद में मेवा मिष्ठान चढ़ाना है। 
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इंसान इस बढ़ती टेक्नोलॉजी के साथ यह पता कर चुका है कि भगवान का घर कहां है? वो आए दिन हर गली, शहर, मुहल्ले में उनके घर बनाता है। बेघर हो चुके भगवान के सर पर छत देता है। 
इकोनॉमी की इस दौड़ में जिस तरह भारत दौड़ लगा के आगे आ चुका है ठीक उसी तरह इंसान भी भगवान से दौड़ लगा के आगे निकल आया है। अब सवाल यह है कि भगवान अगर इंसानों से पीछे रह गए हैं तो इंसान इनके बारे में क्यों सोच रहा है? क्यों वह इन्हें छत देने की जद्दोजहद में जुटा हुआ है? 
तो मेरे ख्याल से इसका जवाब यह है कि इंसान ने आगे बने रहने की परिभाषा भगवान को बिना बताए बदल दी है और वह अब एक बड़े भाई की तरह उनका पथ प्रदर्शित करते रहता है। 
इंसान ने अपनी जमात में भगवान के घर में प्रवेश लेने के पूरे नियम बुलंदी से बता रखें हैं। 
इनमें से एक नियम अभी के नवरात्र में भी माना जा रहा है। सारे घर में प्याज, लहसुन और मांसाहारी भोजन वर्जित कर दिया गया है। भगवान को यह मालूम होना चाहिए कि उनकी कठिन तपस्या इंसान कितने लगन से कर रहा है। कल नवरात्र खत्म हो जाने के बाद जब भगवान रोज रोज के कॉल बेल से मुक्ति पा कर गहरे नींद में सो रहे होंगे तब इसी बात का फायदा उठा कर इंसान चुपके से उनके पीठ पीछे अपनी जमात के साथ पूरे शहर बाजार में बंदरों सा उछलता हुआ एक दुकान से प्याज दूसरे से लहसुन और तीसरे से मांसाहार बटोरता हुआ पाया जाएगा। जब तक भगवान नींद से जागेंगे तब तक लिप पोत कर सब कुछ बराबर कर दिया गया होगा।