जो रास्ते कल तक अधूरा छोड़ जाते थे मुझे, आज उन्होंने ही सलीके से रास्ता दिखाया है । रोज जिन्हें सड़कों पे ढूंढा करती थी, आज उन्हें अपने ही सपने में पाया है । बडे शिद्दत से कोशिश की है, उन नैन नख्शों को एक पन्ने पर उतार सकू । दीवार पे टंगी उस तस्वीर को पूरे दिन ना सही, कम से कम दो पल तो निहार सकू । उलझनो मे लिपटी, खुद से लडती, कभी आसमां की ओर देख लीया करती हूं । मन भर जाये जब चेहरे देख के, तो किसी के दिल में झांक लिया करती हूँ । मन भी बड़ा अजीब है, तरह-तरह के ख्वाब यू ही सजा लेता है । एक कमरे में बंद शख्स को भी, आसमां की शैर करा लाता है । चहारदीवारी से आज ये शरीर बाहर जाना चाहता है पुरे करने कुछ ख्वाब अधूरे, बडते कदम आज फिर रुके है, उन सपनो को मान के पुरे । आँखों की सीमा नहीं है, सिर्फ उन ढलती सिढियो के कोने तक उनकी मंजिल तो कहीं दुर है, किसी और के होने तक । माना, कि मेरे पैरों में बेड़ियां है मेरे पंख कुतरे जा चुके है, पर मन तो नहीं, माना, मेरा शरीर एक पिंजरे में बंद हैं, ख्वाहिशों के जुगनू मर चुके है,...