तन्हाई



वो यादों की  एक हसीन दुनिया,
तुम्हारे आँखों से सब कुछ कह जाना,
रूठ कर यू मान जाना,
सब कुछ तो है मेरे पास
बस, तुम नहीं हो।

छुप छुप के देखना,
हर बात पे हँसना,
पेड़ की छांव में  इन्तजार करना,
सब कुछ तो है मेरे पास
बस, तुम नहीं हो।

वो महकी सी खुशबू,
बच्चों सी मासूमियत,
चाँद सी शीतलता,
सब कुछ तो है मेरे पास
बस, तुम नहीं हो ।

ख्वाहिश



जो रास्ते कल तक अधूरा छोड़ जाते थे मुझे,
आज उन्होंने ही सलीके से रास्ता दिखाया है ।
रोज जिन्हें सड़कों पे ढूंढा करती थी,
आज उन्हें अपने ही सपने में  पाया है ।

बडे शिद्दत से कोशिश की है,
उन नैन नख्शों को एक पन्ने पर उतार सकू ।
दीवार पे टंगी उस तस्वीर को पूरे दिन ना सही,
कम से कम दो पल तो निहार सकू ।

उलझनो मे लिपटी, खुद से लडती,
कभी आसमां की ओर देख लीया करती हूं ।
मन भर जाये जब चेहरे देख के,
तो किसी के दिल में  झांक लिया करती हूँ ।

मन भी बड़ा अजीब है,
तरह-तरह के ख्वाब यू ही सजा लेता है ।
एक कमरे में बंद शख्स को भी,
आसमां की  शैर करा लाता है ।

चहारदीवारी से आज ये शरीर बाहर जाना चाहता है
पुरे करने कुछ ख्वाब अधूरे,
बडते कदम आज फिर रुके है,
उन सपनो को मान के पुरे ।

आँखों की सीमा नहीं है,
सिर्फ उन ढलती सिढियो के कोने तक
उनकी मंजिल तो कहीं दुर है,
किसी  और  के होने तक ।

माना,  कि मेरे पैरों में बेड़ियां है
मेरे पंख कुतरे जा चुके है,  पर मन तो नहीं,
माना, मेरा शरीर  एक पिंजरे में बंद हैं,
ख्वाहिशों के जुगनू मर चुके है, पर मेरी रुह तो नहीं ।

गरमी




तेज धूप के प्रकोप से जमीन में दरार पड़ ग ईल बा धरती

अपना के बचावे के खातिर मिट्टी के फटल चादर बना लेले

बाडि । घड़ी तो ठीक ही समय बतावला, लेकिन दिन कुछ

ज्यादा ही लंबा लागता । गर्म हवा के प्रकोप से लोग अपना

आप के कमरा में बंद करके रखले बाड़े, ठीक  ओइसही जईसे

किमती चीज के शीशा वाला अलमीरा में सजा के रखल

जाला । बडा आलसी दिन भी बा, दोपहर नींद के साथ ही

दस्तक देवला पर जिन्दगी कभी नींद हि ना लेवले ।

सड़क पर भागती गाड़ी में भी लोगों के अफरा-तफरी जारी

बा, ई पसीना निकाले वाला गर्मी में भी । स्कूल से छुटे के  बाद

भी हाय बाय कहेके तांता अभी भी लंबा बा । सुबह ॒ सुबह भी

स्कूल जाये के खातीर बेचैनी बा, ना ज ईहे त शायद कुछ

गुनगुना, खुबसुरत सा पल छुट जाई अईसे लागता । ईतना

तपिश बा कि पैर जला दे, पर फिरभी पेड़  के छ ईया बड़ा

प्यार से हाथ पकडले बा । नीगाह अभी भी जल के खोज में

बड़ा बेचैन बा । ट्रेन के सफर उभी गरमी में,,,

धक्का दे दे करके बड़ा  मुश्किल से खाड होखेखे जगह

मिलल,  पंखा चलत न ईखे पर जुगाड़ ढेर बडुये चाहे कलम से,

न त दातुन से । हवा से साथ जुड ग ईल, आउर सफर शुरू हो

गईल बा ।