गरमी




तेज धूप के प्रकोप से जमीन में दरार पड़ ग ईल बा धरती

अपना के बचावे के खातिर मिट्टी के फटल चादर बना लेले

बाडि । घड़ी तो ठीक ही समय बतावला, लेकिन दिन कुछ

ज्यादा ही लंबा लागता । गर्म हवा के प्रकोप से लोग अपना

आप के कमरा में बंद करके रखले बाड़े, ठीक  ओइसही जईसे

किमती चीज के शीशा वाला अलमीरा में सजा के रखल

जाला । बडा आलसी दिन भी बा, दोपहर नींद के साथ ही

दस्तक देवला पर जिन्दगी कभी नींद हि ना लेवले ।

सड़क पर भागती गाड़ी में भी लोगों के अफरा-तफरी जारी

बा, ई पसीना निकाले वाला गर्मी में भी । स्कूल से छुटे के  बाद

भी हाय बाय कहेके तांता अभी भी लंबा बा । सुबह ॒ सुबह भी

स्कूल जाये के खातीर बेचैनी बा, ना ज ईहे त शायद कुछ

गुनगुना, खुबसुरत सा पल छुट जाई अईसे लागता । ईतना

तपिश बा कि पैर जला दे, पर फिरभी पेड़  के छ ईया बड़ा

प्यार से हाथ पकडले बा । नीगाह अभी भी जल के खोज में

बड़ा बेचैन बा । ट्रेन के सफर उभी गरमी में,,,

धक्का दे दे करके बड़ा  मुश्किल से खाड होखेखे जगह

मिलल,  पंखा चलत न ईखे पर जुगाड़ ढेर बडुये चाहे कलम से,

न त दातुन से । हवा से साथ जुड ग ईल, आउर सफर शुरू हो

गईल बा ।

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