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कश्मकश


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माना, कि मैं याद नहीं तुम्हें,
फिर भी हर इबादत में मेरा नाम क्यू हैॽ
खुबसुरत काली आँखो में,
बेवजह ये मोती क्यू हैॽ

माना, मेरी यादें चुभती है तुम्हारे दिल में,
पर, तुम्हारी धड़कनों पे मेरा राज क्यू हैॽ
बंद अंधेरे कमरे में भी,
एक रौशनी की आश क्यू हैॽ

माना,  मेरी शक्ल भी पसंद नहीं तुम्हें,
पर, तुम्हारे मन में मेरा दर्पण क्यू हैॽ
होठों पर एक शब्द भी नहीं,
पर, इन आँखों में सैलाब क्यू हैॽ 

Comments

Gautam Kumar said…
its simply Great!
suruchi kumari said…
All these words coming from you means a lot to me. Thank you😊✌

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