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मेरे निसांं




कल का निकला सूरज धीरे धीरे अस्त हो रहा है

रंग जो भरा था मैंने सफेदी पे धीरे धीरे वो कोरा हो रहा है

दिल कभी ना खत्म होने की आरजू रखता जरूर है

ख्बाबों को फूलों सा महकाने कि चाहत रखता जरूर है

पर अब ये आरजू, ये ख्वाब सब सिर्फ मेरे होगें

उन्हें रंग देने कि चाहत और खवाहिश भी सिर्फ मेरी होगी

मैली फर्श पे मैने कदम रखा जरूर है

उसके धब्बे अपने पैरों में ले, अपनी गलियों में आ गई

उन्हें फुरसत हो तो वो देखे

मैने उनके दरवाजे पे अपना निसांं छोडा है

Comments

Unknown said…
Kya bat hai , nice thoughts
Unknown said…
Welcome 🤟🤟

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