अपने यादों से कहो



अपने यादों से कहो

अपने सारे बिखरे- पड़े पल

समेट के ले जाएं

घर के कोनों में बिखरे कागजों कि तरह

ये मुझसे जाने अनजाने चिपकती रहती है

मै कभी इन्हें झटक के आगे बढ़ जाती हूं

तो कभी इन्हें समेट के खूद को खो देती हूं

मैं जितनी बार इन्हें बांधना चाहूं

ये उतनी बार कोने से सरक के घर मे फैलती जाती हैं

अपने यादों से कहो

अपने सारे बिखरे-पड़े पल

समेट के ले जाएं

2 comments:

Gautam Kumar said...

बहुत सुंदर

suruchi kumari said...

धन्यवाद