सड़क के ठीक किनारे
अर्धवस्त्र वाले बदन पे
मुझे खूशीयो का पिटारा मिलता है।
ना जाने किस बात पे खुश होते है वो मासूम से चेहरे,
आँखों की चमक जो
सामने खडीं इमारतों की चकाचौंध लाईटों से
कहीं ज्यादा हुआ करती है
ना जाने क्या देख चमक उठतीं है।
खूबसूरत से रंग भरे
उनके सपने अक्सर
ब्लैक एंड व्हाइट से होकर गुजरते हैं,
पर ना जाने किस बात पे वे
इंद्रधनुष से रंग समेटना चाहते है।
बिघो वाली जमीन जो
खुशीयाँ दे नहीं पाती
वो चंद कदमों में माप के
ना जाने किस बात पे खुश होते है वो मासूम से चेहरे
हाथों में कलम के जगह
बर्तन, हथोड़ा थामे
ना जाने कौन सी कहानियां लिख के खुश होते है।
1 comment:
Bahut khoob likha hai
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