बारिश

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आज शहर में जोर कि बारिश आई
और हुआ यूं कि
मेरे घर की खिड़कियां खुली रह गई
बारिश के बूंदों के साथ साथ
हवाओं ने कुछ पत्ते भी
मेरे घर में बिखेर दिये
थोडी सी धूल पे पड़ी
पानी की बूंदें
आकृतियां बनाये
मेरा इंतजार कर रही थी
उन्हें कुछ बताने की धुन सवार हो जैसे
वो पत्ते, धूल, पानी की बूंदें
सब कह गये
जो मैं बरसों से
खुद को भी ना कह पाई

4 comments:

Unknown said...

waah

Anonymous said...

बहुत ख़ूबसूरत लेखन , अच्छा विवरण है। याद रखियेगा कि एक अच्छा लेखक बनने के लिए एक अच्छा पाठक बनना सबसे सर्वप्रथम है, मैं आशा करता हूं आप लेखन के साथ पढ़ती भी रहेंगी और अपना एक 'ideal कवि/कवित्री' भी ढूंढ निकालेंगी . बहुत शुभकामनाएं ।

suruchi kumari said...

धन्यवाद

suruchi kumari said...

धन्यवाद😊😊