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आज शहर में जोर कि बारिश आई
और हुआ यूं कि
मेरे घर की खिड़कियां खुली रह गई
बारिश के बूंदों के साथ साथ
हवाओं ने कुछ पत्ते भी
मेरे घर में बिखेर दिये
थोडी सी धूल पे पड़ी
पानी की बूंदें
आकृतियां बनाये
मेरा इंतजार कर रही थी
उन्हें कुछ बताने की धुन सवार हो जैसे
वो पत्ते, धूल, पानी की बूंदें
सब कह गये
जो मैं बरसों से
खुद को भी ना कह पाई
आज शहर में जोर कि बारिश आई
और हुआ यूं कि
मेरे घर की खिड़कियां खुली रह गई
बारिश के बूंदों के साथ साथ
हवाओं ने कुछ पत्ते भी
मेरे घर में बिखेर दिये
थोडी सी धूल पे पड़ी
पानी की बूंदें
आकृतियां बनाये
मेरा इंतजार कर रही थी
उन्हें कुछ बताने की धुन सवार हो जैसे
वो पत्ते, धूल, पानी की बूंदें
सब कह गये
जो मैं बरसों से
खुद को भी ना कह पाई

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