कुछ तो कहा होगा



ये बिखरी रातें
चादर कि सिलवटें
तुमसे कुछ कहे ना कहे
सुबह की गुनगुनाती धूप ने
कुछ तो कहा होगा ना?
लोगों से भरे रास्ते
शोर से भरा ये आसमां
तुमसे कुछ कहे ना कहे
उन शुनि गलियों ने
कुछ तो कहा होगा ना?
वो बाहों के दायरे
आँखों का झुकना
तुमसे कुछ कहे ना कहे
रात की चाँदनी ने
कुछ तो कहा होगा ना?


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