जिंदगी



हम कोई हाथों में
फूल लिए पैदा नहीं हुये थे
जो हमें सीर्फ खूशबू नसीब हो
हमारे हाथों की ऊंगलियां
एक दूसरे को कस के भींची जरूर थी
जिन्दगी जीने के लिए
अंकों का पहाड़
कभी चाहिये ही नहीं था
जिसके पीछे पूरी जिंदगी भागे
पता चला कि
उसके पीछे तो जिंदगी कभी भागी ही नहीं
हमेशा एक कतार में खड़े रहे
कभी उससे आगे या हट के
करने का क्यूँ नहीं सोचा?
हमेशा कलम थामे इन हाथों ने
जिदंगी को बड़ी बेदर्दी से अपने हाथों से सरकाया है

2 comments:

Kush said...

It seems the poet has come out of its incubation period to enlighten poetry.. lovely ,real !

suruchi kumari said...

😂😂
Thank you Invisible man