तुम तक खत पहूचाऊ कैसे


संजोये सब छण एक खत मे
दिल की बात रह गई जो मन में
उसे मैं आज सुनाऊँ कैसे
तुम तक खत पहूचाऊ कैसे

दिन बिते सुरज को तकते
तारों में उलझी हैं रातें
जिंदगी अपनी वार गई मैं
हर पल, हर छण रस्ता नापे
ये दुखडा अब मैं गाऊं कैसे
तुम तक खत पहूचाऊ कैसे

छोड़ दिया साज, सृंगार
मुख दर्पण निहारना
छोड़ दिया गजरा, लाल फूल
काजल, लालि लगाना
अब मुखडा ये छुपाऊं कैसे
तुम तक खत पहूचाऊ कैसे

अलमीरा मे बंद लाल चूनर
सामने पड़े वो तेल फुलेल
रंग बिरंगे चीर कतार में
एक दुसरे से करते हेल मेल
तुम बिन खुद को सजाऊं कैसे
तुम तक खत पहूचाऊ कैसे

बागीचे कि भीनी खूशबू
एक अकेला अहलादित गुलाब
हरे भरे सब रंग समेटे
लगते है जैसे हो सबाब
इन सबको आँखों में बसाऊं कैसे
तुम तक खत पहूचाऊ कैसे

घर का वो अपनापन 
मिट्टी की सोंधी सुगंध
खेतों में लहराते फसल 
माँँ का सुनहरा आँचल
पापा का वो स्नेह अवतार
ये तुमको मै दिखलाऊँ कैसे
तुम तक खत पहूचाऊ कैसे

किले के वो लंबे द्वार
जिसके आगे है द्वारपाल
बीच भंवर में हजारों घर
जो बाहर खड़े हैं आँखें डाल
ये घूंघट अब उठाऊं कैसे
तुम तक खत पहूचाऊ कैसे


1 comment:

suruchi kumari said...

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