चाहत



आज- कल कुछ चाहत यूं है
कि चाहे भी सबकुछ
और बताये भी ना
रूठे भी खुद से
और कोई मनाये भी ना?
हम मांगें है सबकुछ
कुछ कहे भी ना
गले तक ला के बात
होठों पे सजाये भी ना
रुठे भी खुद से
और कोई मनाये भी ना?
सोचे सब दिल से
आँखों तक लाये भी ना
झगड़े हम उनसे
और मुंह बिचकाये भी ना
समझ ले वो खुद ही सारी बातें
हम कुछ कहे भी ना


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