छिटकली



हर शाम उनके यहां की
छिटकलीयां बड़ा सवेरे लगा करती हैं
और हर सुबह
एक औरत वहां से
लड़खड़ाते हुए निकलती है
बडी़ कोमल है तू
ये कह के वो ब्याही गई थी
वो अपनी कोमलता दिन भर
के कामों में, धूप के निचे,
तप के, उपले बनाने में
उजाड़ा करती है
अपने माथे के शीकन 
वो घर कि जिम्मेदारियां
उठा के बटोरा करती है
चेहरे की शीतलता तो
उसने ब्याह के दो महीने
बाद ही पोटली मे बांध
कुऐं मे फेक दिया था
अब वहां बस कुछ
आकृतियां ही बसतींं है
सख्ती कि जो हुंकार
भरा करते थे
वो दुरे पे बैठ 
तास के पत्ते और खैनी थूकने मे
गवांया करते है
हर शाम उनके यहां की छिटकलीयां
बड़ा सवेरे लगा करती हैं
और हर सुबह
एक औरत वहां से
लड़खड़ाते हुए निकलती है


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