पाजेब जो पहनाईं थी तुमने
वो न जाने कब बेड़ियां बन गई
पता ही नही चला
गले का हार भी
धिरे-धिरे फंदा बनता जा रहा है
सो मैंने सारे जेवर उतार दिये हैं
वो मंगलसूत्र भी
जो तुमने पहनाया था
माथे का सिंदूर है अभी
और मरते दम तक रखूंगी
इसलिए नहीं कि
तुम चाहते हो
बल्कि, इसलिए कि
मै चाहती हूं
सोचती हूँ, अपने आप को
किसी के हवाले कर देना,
समर्पित कर देना
कहा कि प्रथा है?
गलती तुम्हारी नहीं है
तुमसे क्या गीला शिकवा
जब मैने बेवफाई खुद से कि है
जो लकीरें खिंचीं थी तुमने मेरे आगे
आज मैं वो लांघ रही हूं
खुद की तलाश मे
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