फूलों वाले पेड़
के नीचे बैठ के
दो कपड़ें वाले रिश्तो को
वो प्यार के धागों से
सिल रही थी
बीच मे जब कभी धागे
अटक जा रहे थे
तो वो बड़े शान्ति से
उसे अपने उंगलियों
पे ले, सुलझाती थी
पर धागे इतने
ढिठ हुआ करते थे कि
फसते ही जाते थे
फिर भी उसने गुस्से
मे आकर कभी धागा तोडा़ नहीं
कल उसने वो चादर
उसी फूल वाले पेड़ के
नीचे बिछाया था
लोगों ने उसपे बने फूलो
को सराहा, उसके रंगों की तारीफ़ की
बीच के सिले धागे
पेड़ पे लगे फूलों को
निहार रहे थे।
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