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Showing posts from November, 2020

उम्मीद

 हर रोज मेरी सांसों पे अपनी हुकुमत दिखाने से बेहतर होता मेरी सांसें रोक देना पानी भी जब शरीर पे पड़ता है तो वह रास्ता बनाके निकल जाता हैं पर इन कटाक्ष का ना कोई रास्ता है ना ही सहारा अंधेर मे सांसें जाने से बेहतर है ये जिंदगी  एक उम्मीद का टूकड़ा ढूढें

दोपहरी

 खिली धूप, हवा मे झूमते प़ेड और जवान होती दोपहरी अपनी आँखें टिकाये दिन का भोग विलास कर रहे है ये ठंडी हवाएं मदिरा कि भांति उनके मन को उडाये जा रही है पत्तों का आलिंगन उनके हृदय में सेंध लगाये जा रहा है खुला, नीला आसमान पेड़ को अपनी आगोश में भर लेना चाहता है सूरज अपनी सासों से नदी का धड़कन संभाले हुए हैं सितारों की चुनर ओढ़ के चाँद सोने को आतुर है इन सबसे दूर हिमालय अपनी ही स्वाधीनता मे लिन हो जाना चाहता है।

बच्चे गढ़े

अपनी जवानी धूप मे  सिंच के उसने दो बच्चे गढ़े अपने चेहरे कि कोमलता चुल्हे के धुएं मे उड़ा उसने दो बच्चे गढ़े मुलायम, मखमली हाथों कि सुंदरता राख मे घोल के  बर्तन के साथ धो दिये अपने कुम्हलाए से  ख्वाब को  कुचल के उसने दो बच्चे गढ़े