हर रोज मेरी सांसों पे अपनी हुकुमत दिखाने से बेहतर होता मेरी सांसें रोक देना पानी भी जब शरीर पे पड़ता है तो वह रास्ता बनाके निकल जाता हैं पर इन कटाक्ष का ना कोई रास्ता है ना ही सहारा अंधेर मे सांसें जाने से बेहतर है ये जिंदगी एक उम्मीद का टूकड़ा ढूढें
खिली धूप, हवा मे झूमते प़ेड और जवान होती दोपहरी अपनी आँखें टिकाये दिन का भोग विलास कर रहे है ये ठंडी हवाएं मदिरा कि भांति उनके मन को उडाये जा रही है पत्तों का आलिंगन उनके हृदय में सेंध लगाये जा रहा है खुला, नीला आसमान पेड़ को अपनी आगोश में भर लेना चाहता है सूरज अपनी सासों से नदी का धड़कन संभाले हुए हैं सितारों की चुनर ओढ़ के चाँद सोने को आतुर है इन सबसे दूर हिमालय अपनी ही स्वाधीनता मे लिन हो जाना चाहता है।
अपनी जवानी धूप मे सिंच के उसने दो बच्चे गढ़े अपने चेहरे कि कोमलता चुल्हे के धुएं मे उड़ा उसने दो बच्चे गढ़े मुलायम, मखमली हाथों कि सुंदरता राख मे घोल के बर्तन के साथ धो दिये अपने कुम्हलाए से ख्वाब को कुचल के उसने दो बच्चे गढ़े