दोपहरी

 खिली धूप, हवा मे झूमते प़ेड

और जवान होती दोपहरी

अपनी आँखें टिकाये

दिन का भोग विलास कर रहे है

ये ठंडी हवाएं मदिरा कि भांति

उनके मन को उडाये जा रही है

पत्तों का आलिंगन उनके

हृदय में सेंध लगाये जा रहा है

खुला, नीला आसमान

पेड़ को अपनी आगोश में

भर लेना चाहता है

सूरज अपनी सासों से

नदी का धड़कन संभाले हुए हैं

सितारों की चुनर ओढ़ के

चाँद सोने को आतुर है

इन सबसे दूर हिमालय

अपनी ही स्वाधीनता मे

लिन हो जाना चाहता है।



2 comments:

@9jali @9@9d said...

Liveful lines🥰👌👌👌💕

suruchi kumari said...


😊😊😊😊धन्यवाद