तारों के शहर में

 रेत पर अपनी बिसात बिछा के

अपनी चुनरी नदी किनारे सजा के

वो एक दिन दूर निकल जायेगी

हवाओं में खुद को घोल के

दिन की रौशनी चुरा के

वो एक दिन दूर निकल जायेगी

रातों में ख्वाब सजा के 

तकिए के बगल वाली रौशनी बुझा के

वो एक दिन दूर निकल जायेगी

तारों के शहर में।

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