ना जाने कितनी रातें
खुद को खुद में समेटे
आंसुओ के साथ गुजारी।
सब कुछ सही साबित करने का पागलपन,
अपनी गलती छुपाने
की नाकाम कोशिश,
लोगो के सामने
सिसकियां दबा के
अपने चेहरे पे एक मुस्कान ओढ़ना,
कितना गलत किया है मैने?
हर सुबह का बेसब्री से
इंतजार करना
इसलिए कि रातें भले
ही काली हो
सुबह का सवेरा सब कुछ
बदल देगा।
कितनी बेवकूफ थी मैं?
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