तुम्हारी खिड़की में लगी एक कील किसी ने निकाल दी है, अब मेरा आंचल वहां फंसा नहीं करता। अब मैं वहां किसी बहाने से रुक नहीं पाती। तुम्हे रोज ना देखने का दर्द मुझे हर रात सताता है। तुम्हारी खिड़की से आती चाय और स्याही की मिलीजुली खुशबू अब मेरे दामन से लग के जमीन पर बिखर जाया करती हैं मैं चाह के भी उन्हें अपने आंचल के कोने पर बांध नहीं पाती क्यूंकि रास्ते में अजनबी आंखे मुझे ताकती हैं।