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मां




 जब भी कभी मां किसी और के साथ हंसते, खिलखिलाते दिखती हैं तो, उस वक्त बस यही ख्याल आता है कि वो मुझसे दूर जा रही हैं। वो हंसता हुआ चेहरा मेरे साथ क्यूं दो बाते नहीं कर रहा? क्यूं सारी की सारी मुस्कुराहट किसी और पे उड़ेली जा रही हैं? कितना गलत है यह सब? क्या मम्मी मुझसे प्यार नहीं करतीं? क्या उन्हे मेरी जगह कोई और अच्छा लग रहा है? और न जाने क्या - क्या सवाल मेरे मन में घूमते हैं। 

मां हर किसी की जिंदगी का वो मुख्य शख्स है जिसके आंचल में छिप के आप रोते है। रोना इसलिए क्यूंकि हम पूरी दुनियां के सामने नहीं रोते। हम चट्टान की तरह जड़ रहते है। बिना कुछ बोले बिना अपनी तकलीफ अल्फाज़ में बयां किए, हम बस दिखावा करते है। 

मां का आंचल उन सारे दिखावे को पर्दे के बाहर कर देता है और, हम सूर्यमुखी के फूल की तरह उनके प्यार भरे किरणों की तरफ मुंह कर लिया करते हैं। किसी और के साथ वो हमदर्दी उनके आंचल में किसी और के आने का संकेत दे जाती है, जो मन के कोने में उदासी की लो जला जाती है।  क्यूंकि मां हमेशा पुरी की पुरी चाहिए होती है। 

वो जिस भी वक्त मुस्कुराए वो वजह मेरी हो। उनका आंचल मेरा हो। उनके प्यार भरे शब्द जो वो मुझे बुलाने के लिए कहा करती हैं वो सिर्फ मेरे हो। ठंड की धूप और चाय की गर्म चुस्की का जस्मादित गवाह मैं बनू। सप्ताह में दो बार की चंपी मेरी हो। पूरी की पुरी मां मेरी हो।

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