Skip to main content

Half truth

 



Standing on the brink

I am observing

all the days and nights

that I have spend 

telling the half truth

and masking the othe half 

under my smile.

Those unsaid words 

have found voice today.

They are gabbing

around the corner

having a cunning eye 

they are following me,

and tearing me apart.

My body is standing on the brink

and my mind is drowning.




Comments

Popular posts from this blog

भगवान

किताबों की पढ़ी पढ़ाई बातें अब पुरानी हो चुकी हैं। जमाना इंटरनेट का है और ज्ञान अर्जित करने का एक मात्र श्रोत भी। किताबों में देखने से आँखें एक जगह टिकी रहती हैं और आंखों का एक जगह टिकना इंसान के लिए घातक है क्योंकि चंचल मन अति रैंडम। थर्मोडायनेमिक्स के नियम के अनुसार इंसान को रैंडम रहना बहुत जरूरी है अगर वो इक्विलिब्रियम में आ गया तो वह भगवान को प्यारा हो जाएगा।  भगवान के नाम से यह बात याद आती है कि उनकी भी इच्छाएं अब जागृत हो गई हैं और इस बात का पता इंसान को सबसे ज्यादा है। इंसान यह सब जानता है कि भगवान को सोना कब है, जागना कब है, ठंड में गर्मी वाले कपड़े पहनाने हैं, गर्मी में ऐसी में रखना है और, प्रसाद में मेवा मिष्ठान चढ़ाना है।  सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इंसान इस बढ़ती टेक्नोलॉजी के साथ यह पता कर चुका है कि भगवान का घर कहां है? वो आए दिन हर गली, शहर, मुहल्ले में उनके घर बनाता है। बेघर हो चुके भगवान के सर पर छत देता है।  इकोनॉमी की इस दौड़ में जिस तरह भारत दौड़ लगा के आगे आ चुका है ठीक उसी तरह इंसान भी भगवान से दौड़ लगा के आगे निकल आया है। अब सवाल यह है कि भगवान अग...

कमरा नंबर 220

बारिश और होस्टल आहा! सुकून। हेलो दी मैं आपकी रूममेट बोल रहीं हूं, दरवाजा बंद है, ताला लगा है। आप कब तक आयेंगी।  रूममेट?  रूममेट, जिसका इंतजार मुझे शायद ही रहा हो। कमरा नंबर 220 में एक शख्स आने वाला है। कमरा नंबर 220, जो पिछले 2 महीनों से सिर्फ मेरा रहा है। सिर्फ मेरा।  मैंने और कमरा नंबर 220 ने साथ-साथ कॉलेज की बारिश देखी है। अहा! बारिश और मेरा कमरा कितना सुकून अहसास देता है। बारिश जब हवा के साथ आती है तो वो कमरे की बालकनी से अंदर आके करंट पानी खेल के जाती है। कमरा, जिसपे मेरा एकाकिक वर्चस्व रहा है। कमरा, जिसमे मैं कॉलेज से आते ही धब्ब से बिस्तर पर पड़ के पंखे के नीचे अपने बाल खोल कर बालकनी से बाहर बादल देखा करती हूं। कमरा, जिसे मैंने अब तक अकेले जिया है।  हेलो? हां, मैं अभी ऑडिटोरियम में हूं, तुम कहां हो? मैं होस्टल में हूं। कमरे के बाहर। कितने देर से खड़ी हो? सुबह से ही आई हूं। ऑफिस का काम करा के ये लोग रूम अलॉट किए है।  अच्छा..... यार मैं तो 6 बजे तक आऊंगी। तुम उम्मम्म.... तुम्हारे साथ कोई और है? पापा थे चले गए वो। अच्छा, सामान भी है? हां, एक बैग है। अभी आना ...

टपकता खून

तुम्हारे पर्दे से टपकता खून  कभी तुम्हारा फर्श गंदा नहीं करता वो किनारे से लग के  बूंद बूंद रिसता है  मुझे मालूम है कि  हर गुनाहगार की तरह  तुम्हे, तुम्हारे गुनाह मालूम है पर तुम्हारा जिल्ल ए इलाही बन  सबकुछ रौंद जाना  दरवाजे पर लटके पर्दे पर  और खून उड़ेल देता है।