जिंदगी की रेस

 

📷@anand_aadarsh 

कभी जिंदगी में ठहरना नहीं सीखा 

जब भी सीखा तो बस चलते रहना 

एक रास्ते से दूसरे रास्ते की ओर 

बेमन से भागते रहना। 

रास्तों को पैरों तले रौंद के 

हम पहूंच भी कहां गए है?

पिछले वाले मुहाने पर 

गुलाब की बस एक झलक देखी 

भीड़ से छूट जाने के डर से 

दो पल रुक के निहार भी न सकी।

बारिश के दिन छत ढूंढने में गुजरे

और सर्दी उस छत से सिकुड़ कर 

जिंदगी की रेस में बने रहने के लिए 

हर रोज अपने मन को खूटी पे टांग कर निकलती रही। 

जिंदगी में ठहराव की कीमत होती है 

दो पल का सुकून, थोड़ी सी चैन की सांस,

बाहरी नजारे को आंखो में भरने की खुशी 

और शायद गुम हो जाने का डर।






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