अपने आप को
चार दीवारों में सजा के
रखने की।
अपने राज को छत
से चिपका के
घंटो तकने की।
हमें आदत है
निगाहें चुराने की
और निगाहों
से भागने की।
हमें आदत है
बाहर के दुनिया में अपने आपको
लोहे के अदृश्य गोले
में कैद करने की।
बाहरी मंजर एक छलावा है
और हमारा कमरा
सच का आखरी पड़ाव।
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