और मेरा उस धूप से बाहर निकल
छांव ढूंढना, और, मेरा ये सोचना
की तुम्हे छांव मिले ही ना
कितनी बेअदब बातें हैं ये।
छांव ढूंढने की जद्दोजहत जितनी
मेरी है, उतना तुम्हारा भी।
जितनी लालसा मेरी है
पेड़ के नीचे बैठ सूखे पत्ते गिरते देखने की
उतना तुम्हारा भी।
जितनी ठंडक की तलाश मुझे है
उतना ही हक तुम्हारा भी।
3 comments:
😇
Thank you
Beautiful....
Post a Comment