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बीते वक्त के साथी,
बहुत सालों से तुम्हें चिट्ठी लिखना चाहती थी। हां, वो वक्त कोई और था और अब कुछ और। ये जानते हुए भी लिख रही हूं की ये तुम तक कभी नहीं पहुंचेगी और इस सुकून के साथ भी। अभी बारीश हो रही है और मुझे म्यूजिक टीचर की याद आ रही है। जानती हूं तुम्हे नहीं पता, और तुम्हे बताने की कोशिश भी नही करना चाहती। जब चिट्ठी लिखना चाहती थी तो यादों के बारे में लिखना चाहती थी पर, अब जब लिख रही हूं तो आज के बारे में लिख रही हूं। आज की सुबह बाकी के सुबह जैसी ही रही, शांत और सुकून भरा। तुम कभी कभी उन सुबहों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश करते तो हो, पर अब मुझे आज अच्छा लगने लगा है। वो अच्छा लगने लगा है जिनमे मैं हूं, जहां मैं हूं। भाग दौड़ की जिन्दगी मैंने बंद कर दी है।
मैं अभी तुम्हे ये भी लिखना चाहती हूं की बारिश तेज हो रही है और मुझे चाय पीने का मन है, पर मैं आलस की वजह से खिड़की से हट नहीं रही या, यूं कहूं की हटना नहीं चाहती।
तुम्हें पता है मुझे बारिश बहुत पसंद है। इनमे एक संगीत होता है। शांत होके बैठोगे तो सुन पाओगे, कभी कोशिश करना। इसलिए भी पसंद है क्युकी बारिश के बाद सब कुछ हल्का लगने लगता है। जिंदगी में हल्का होना बहुत जरूरी है। वजन से इंसान ज्यादा दूर नहीं जा सकता और, अगर जा भी पाए तो वो कंधो का दर्द सहना बहुत मुश्किल हो जाता है।
मुझे ऐसा लगता था की जब मैं तुम्हे चिट्ठी लिखने बैठूंगी तो वो तीन, चार पन्नो तक जाएगा पर, सच यह है की अब मैं कुछ और लिखना नहीं चाहती।
मेहंदी की खुशबू आ रही है।
4 comments:
बहोत खूब....👌😍
हबीबी कमाल कर दिता ❤
Bahut sahi likha hai aapne💯💯
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